भारत का पुनरूत्थान
राष्ट्रीय पुनरुत्थान भारतीय समाज में व्यक्ति का लगातार अमानवीयकरण ही विगत कई वर्षों से वैचारिक इतिहास का केंद्रीय तत्व रहा है। किसी भी समाज में यदि व्यक्ति का निरंतर अमानवीयकरण होता रहा, तो वह समाज कभी भी मजबूत नहीं हो सकता, चाहे कितना भी बड़ा भौतिक और आर्थिक ढाँचा क्यों ना खड़ा कर ले। आज के दौर में जब नैतिक मूल्यों का पतन तथा चारित्रिक और वैचारिक ह्रास हमारे राष्ट्रीय संकट का एक महत्त्वपूर्ण आयाम है, इसलिए समाज में धर्म की पुनर्स्थापना आवश्यक है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो राष्ट्र धीरे-धीरे इस पतन से स्वतः ही समाप्त हो जाएगा। यह पतन समाज में चारों ओर दिखाई दे रहा है। अधिकतर राजनेता, प्रशासनिक अधिकारी और छोटे से लेकर तबके के लोग अपने मान-बढ़ाई, शान-शौकत और रुतबे के लिए गरीब लोगों का शोषण करने में ही लगे हुए हैं।
स्वामी विवेकानन्द ने जी ने भारत में निम्न कहे जाने वाले वर्गों के उत्थान के लिए निरंतर प्रयास किया और देशवासियों, खासकर युवाओं को इस दिशा में काम करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि-“ हमारा सबसे बड़ा राष्ट्रीय पाप जन-समुदाय की उपेक्षा है, और यही हमारे पतन का एक कारण है। विवेकानन्द जी भारत के पुनरुत्थान के प्रति बहुत आश्वस्त थे। इसमें वह भारत के युवाओं की भूमिका बहुत अहम् मानते थे। भारत के उत्थान और नव-निर्माण में वोचाहते थे की युवा अपनी संस्कृति और सभ्यता के साथ आगे बढ़ें।
आज वर्तमान में सन्त रामपाल जी महाराज भारत के पुनरुत्थान के लिए काफ़ी संघर्ष कर रहे हैं। उन्हीं के आध्यात्मिक विचारों से प्रेरित होकर आज के युवा, बड़े-बुजुर्ग, पुरुष-महिला, अमीर-गरीब लोग भ्रष्टाचार, नशा, जाति-पाति और भी अन्य प्रकार की बुराइयों को मिटाकर एक समृद्ध और सशक्त राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। यदि एक तरफ़ हिन्दुस्तान का कानूनी संविधान और दूसरी तरफ सन्त रामपाल जी महाराज का आध्यात्मिक संविधान लागू हो जाए तो निश्चित तौर पर आध्यात्मिक ज्ञान से ही हिन्दुस्तान से समस्त बुराईयों का सफाया हो जाएगा।
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